साँझ होते ही उफ़ुक़ पे जा कर खो गया है
शायद आफताब भी थक कर सो गया है
रात ने चारों तरफ स्याह चादर फैला दी
लोग सो गए बस्ती में सन्नाटा हो गया है
आज तक समझते रहे बहुत खुश होगा
वह भी आकर अपना दुखड़ा रो गया है
कभी होली दिवाली खुशियों का शबब थे
गरीब के लिए त्यौहार बोझ हो गया है
भले पाँव तमाम कांटो से ज़ख़्मी हो गया
मुहब्बत के बीज मगर मुकेश बो गया है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
शायद आफताब भी थक कर सो गया है
रात ने चारों तरफ स्याह चादर फैला दी
लोग सो गए बस्ती में सन्नाटा हो गया है
आज तक समझते रहे बहुत खुश होगा
वह भी आकर अपना दुखड़ा रो गया है
कभी होली दिवाली खुशियों का शबब थे
गरीब के लिए त्यौहार बोझ हो गया है
भले पाँव तमाम कांटो से ज़ख़्मी हो गया
मुहब्बत के बीज मगर मुकेश बो गया है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
No comments:
Post a Comment