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Friday, 31 October 2014

जिस घाव को भरने में हमको इक ज़माना लगा

जिस घाव को भरने में हमको इक ज़माना लगा
उस ज़ख्म को फिर से हरा करने में लम्हा लगा

जिसे लोग बेवज़ह पागल दीवाना कहा करते थे
हमें तो वो शख्श बातचीत में बहोत दाना लगा

कभी पतझड़ कभी बादल तो कभी लू के थपेड़े
तुम्हारे आने के बाद, मौसम कुछ सुहाना लगा

पंडित हो, क़ाज़ी हो या कि शहर का  हाक़िम हो
मुझे तो हर शख्श तुम्हारे हुस्न का दीवाना लगा

मुकेश उस हादसे को फिर से क्यूँ याद दिलाते हो
जिस बात को भूलने में हमको इक ज़माना लगा

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------

Thursday, 30 October 2014

ग़र चाँद होते तेरी राह में चांदनी सा बिछ गए होते

ग़र चाँद होते तेरी राह में चांदनी सा बिछ गए होते
ये किस्मत की बात, ख़ुदा ने मुझे सूरज बनाया है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------

बादलों की ज़मीं पे ग़ज़ल लिख दिया

बादलों की ज़मीं पे ग़ज़ल लिख दिया
यूँ कि चाँद को हमने ख़त लिख दिया
साँसों में बेला, चमेली, रात रानी झरे
नाम हमने उसका महक लिख दिया
झील सी आखों में खिलखिलाती हंसी
उस फूल को हमने कँवल लिख दिया
रूई के फाॉहों से उजले उजले आरिज़
गालों पे उसके मुहब्बत लिख दिया
मुद्दत हुई हमसे बोलता नहीं मुकेश
अब तो उसे बेवफा सनम लिख दिया
मुकेश इलाहाबादी -------------------

आँखे जागती हैं, ख्वाब सो गये

आँखे जागती हैं, ख्वाब सो गये
कभी बहती नदी थे,बर्फ हो गये

तमाम चेहरे बसे गये ज़ेहन में
यादों की भीड़ में हम खो गये

कभी हंसी -खुशी की मिसाल थे 
क्या थे हम और क्या हो गये ?

फूल खिला रहे थे जिनके लिए
वो ही हमारे लिए कांटे बो गये

मुकेश तमाम खुशनसीब लोग
अपना सारा दुःख मुझसे रो गये

मुकेश इलाहाबादी -------------

Sunday, 26 October 2014

ताज़ा कली सी मुस्कुराती दिखी


ताज़ा कली सी मुस्कुराती दिखी
छत पर वो कपडे सुखाती दिखी
है बदन जिसका चांदनी चांदनी
सजी संवरी बाज़ार जाती दिखी
सोचता रहता हूँ जिसे दिन रात
छज्जे पे कुछ सोचती सी दिखी
जिसे नाज़ुक समझते रहे लोग
ज़रुरत पे झांसी की रानी दिखी
वो लड़की जिसे छुई - मुई कहा
हर काम में आगे से आगे दिखी
मुकेश इलाहाबादी ---------------

आ तुझे इक हसीन तोहफा दे दूँ

आ तुझे इक हसीन तोहफा दे दूँ
तेरे आरिज़ के तिल पे बोसा दे दूँ
तेरे संग थोड़ी सी शरारत करूँ औ
ख़फ़ा होने का तुझे इक मौका दे दूँ
मुकेश इलाहाबादी -----------------

Tuesday, 21 October 2014

मुहब्बत करना और इज़हार न करना तेरी पुरानी आदत है

मुहब्बत करना और इज़हार न करना तेरी पुरानी आदत है
अब तो मै हर राज़ तेरी खामोशी निगाहों से  समझ लेता हूँ
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------------------

Monday, 20 October 2014

साँझ होते ही उफ़ुक़ पे जा कर खो गया है

साँझ होते ही उफ़ुक़ पे जा कर खो गया है
शायद आफताब भी थक कर सो गया है

रात ने चारों तरफ  स्याह चादर फैला दी
लोग सो गए बस्ती में सन्नाटा हो गया है

आज तक समझते रहे बहुत खुश होगा
वह भी आकर अपना दुखड़ा रो गया है

कभी होली दिवाली खुशियों का शबब थे
गरीब के लिए त्यौहार बोझ हो गया है

भले पाँव तमाम कांटो से ज़ख़्मी हो गया
मुहब्बत के बीज मगर मुकेश बो गया है

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

Sunday, 19 October 2014

जल्दी मै मायूस नहीं होता

जल्दी मै मायूस नहीं होता
बेवज़ह खामोश नहीं होता
यूँ तो रिन्द नहीं हूँ लेकिन
पी कर यूँ बेहोस नहीं होता
लोग दगा दे जाते हैं मगर
मुझे अफ़सोस नहीं होता
खोखले इंकलाबी नारों से
मेरे अंदर जोश नहीं होता
सीधे - सादे बहुत मिलेंगे
हर कोई मुकेश नहीं होता

मुकेश इलाहाबादी -------

Saturday, 18 October 2014

तमाम धूप और छाँव से बचाते रहे


तमाम धूप और छाँव से बचाते रहे
उम्रभर तमन्नाए गुल खिलाते रहे
इक तेरी बेरुखी की धूप सह न सके
रह-रह के गुले तमन्ना मुरझाते रहे
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मुकेश इलाहाबादी -

Thursday, 16 October 2014

कि,कोई बात समझता ही नहीं

कि,कोई बात समझता ही नहीं
दिल है कि कहीं लगता ही नहीं

घर तो भर लिया खिलौनों से
दिल  है  कि बहलता  ही नहीं

चाँद सी सूरत देख कर भी अब
अब मेरा दिल मचलता ही नहीं

तेरी जुल्फों के सिवा, कमबख्त
दिल मेरा कही उलझता ही नहीं

बहुत बार तो समझाता है मुकेश 
तू उसकी बात समझता ही नहीं ?


मुकेश इलाहाबादी -----------

Saturday, 11 October 2014

देख रहा ज़माना उसे साँसे रोक के

देख रहा ज़माना उसे साँसे रोक के
निकला है चाँद बादलों की ओट से
मुकेश इलाहाबादी -----------------

ईश्क के घर में चराग़े दिल जलाये बैठे हैं

ईश्क के घर में चराग़े दिल जलाये बैठे हैं
तब से हम आग के दरिया में नहाये बैठे हैं

ज़माने की झूठी तसल्ली हमें गवारा नहीं
अपने ज़ख्म अपने सीने से लगाये बैठे हैं

जाने किस पल बुत में दिल धड़क जाए
यही सोच के पत्थर से दिल लगाये बैठे हैं

गुलबदन है छिल न जाए उसका जिस्म
महबूब के लिए हम चाँदनी बिछाए बैठे हैं

सुना है अकेले में मेरी ग़ज़ल गुनगुनाते हैं
आज उसी के लिए महफ़िल सजाये बैठे हैं

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

Friday, 10 October 2014

ह्या का परदा का हटा के देखो

ह्या का परदा का हटा के देखो
ज़रा पलकें अपनी उठा के देखो

आईना तेरा बन तो जाऊं अगर
तुम नज़रें मुझसे मिला के देखो

रूठ के मुझसे बैठो न तुम ज़रा
शिकवा शिकायत मिटा के देखो

क़ायनात सारी नाच उठेगी,तुम
मेरे सुर  से सुर मिला के देखो

मुकेश दो साहिल मिल जाएंगे
प्यार का पल तुम बना के देखो

मुकेश इलाहाबादी --------------

Thursday, 9 October 2014

मिटा के सारी इबारत यादों की सलेट के

मिटा के सारी इबारत यादों की सलेट के
सो गया हूँ मुँह ढक कर  चादर लपेट के

तोड़ डाले सारे जाम मुहब्बत के नाम के
बिन रहा हूँ ,अब टुकड़े दिल की पलेट के

थक गया हूँ चल चल के तेरी तलाश में
ख़ाबों से दिल बहलाऊँ बिस्तर पे लेट के

तुमको न दिखेगा मुकेश अब शहर में
वो जा चुका है  साज़ो सामान समेट के

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Wednesday, 8 October 2014

सूरज मेरे हिस्से की धूप दे दे

सूरज मेरे हिस्से की धूप दे दे
वज़ूद में सर्दपन है तपन दे दे
उसकी यादों में इत्र सा महकूँ
ऐ कँवल थोड़ी सी महक दे दे
वज़ूद मेरा सांवलापन लिए है
ऐ चाँद मुझे भी गोरापन दे दे
तनहा कब तक सफर में रहूँ
इक साथी तो खूबसूरत दे दे
कब तक दर्द से तड़पता रहूँ
तू ही मरहम ऐ मुहब्बत दे दे
मुकेश इलाहाबादी -----------

मेरे काँधे पे धूप का दुशाला दे दे

मेरे काँधे पे धूप का दुशाला दे दे
सूरज मुझे थोड़ा सा उजाला दे दे
फ़क़त गुब्बारे के लिए रूठ जाऊं
फिर से  वही बचपन दुबारा दे दे
मुकेश इलाहाबादी ---------------

Tuesday, 7 October 2014

दिल चन्दन जलाते रहे

दिल चन्दन जलाते रहे 
शबे - हिज़्र महकाते रहे
कँवल सी तेरी मुस्कान
तसव्वुर में खिलाते रहे
घर की हर दरो दीवार पे
तेरी तस्वीर सजाते रहे
तुम खूबसूरत ग़ज़ल हो
तेरा नाम गुनगुनाते रहे
दर्द से जान जाती रही
ज़ख्म मगर छुपाते रहे

मुकेश इलाहाबादी -----

Monday, 6 October 2014

ख़ूबसूरती हो खुशबू हो और ताज़गी भी हो

तस्वीर कुछ कहती है -----------------------

ख़ूबसूरती हो खुशबू हो और ताज़गी भी हो
फूल से अलफ़ाज़ मिलें तो ख़त तुझे लिखूं

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

Sunday, 5 October 2014

ग़र तू हमसफ़र हो जाएगा

ग़र तू हमसफ़र हो जाएगा
सफर खूबसूरत हो जाएगा
प्यार इक पाक़ सी नदी है
नहाके ताज़ादम हो जाएगा
उज़डे चमन सा तेरा वज़ूद
हरा भरा चमन हो जाएगा
इक बार जो मुस्कुरा दो,तो
चेहरा गुलमोहर हो जाएगा
बादल सी ज़ुल्फ़ें झटक दो
ये सहरा समंदर हो जाएगा 

मुकेश इलाहाबादी ---------

अँधेरे के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा दिया है

अँधेरे के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा दिया है
छोटा ही सही एक चराग़ जला दिया है
कुछ सिरफिरों ने गुलशन उजाड़ दिया
हमने फिर गुले मुहब्बत लगा दिया है
हमारी तरफ इक पत्थर उछाल उसने
बदले में इक गुलदस्ता भिजा दिया है
कलन्दरी रास आ गयी जिस दिन से
दौलते जहान  की हमने लुटा दिया है
यादों के सफे पे उसका नाम लिखा था
मुकेश हमने वो नाम भी मिटा दिया है

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

Friday, 3 October 2014

गुलों का खिलना न हुआ

गुलों का खिलना न हुआ
मौसम खुशनुमा न हुआ
वह ग़ैर था ग़ैर ही रहा
मेरा वह अपना न हुआ
चिलमन से झांकता रहा
रू ब रू सामना न हुआ
रात हो गयी अभी तक
चाँद का उगना न हुआ
हम मिश्रा ऐ सानी रहे
मिश्रा ऐ ऊला न मिला

मुकेश इलाहाबादी ----

Wednesday, 1 October 2014

दर्द ख़ुद ही जुबां हो गयी

दर्द ख़ुद ही जुबां हो गयी
ज़ुल्म की इंतहां हो गयी
बर्फ की इक नदी थे हम
तेरे प्यार में रवां हो गयी
ग़म हमारा सबके लिए 
मज़े की दास्तां हो गयी 
तुम हमसे मिल गए हो 
हसरतें जवां हो  गयीं
तेरी सादगी मेरा प्यार
अबतो हमनवां हो गयी

मुकेश इलाहाबादी -------