तुम्हारे बदन की रातरानी खुशबू अच्छी लगी
सांवली रात चांदनी के लिबास में भली लगी
तितलियों के पंख सी झपकती तुम्हारी पलकें
रुप के महकते गुलशन में बेफिक्र उडती लगीं
जब तुम अपने बाल लहरा के चलती हो सच
तुम छलछलाती बलखाती इठलाती नदी लगीं
कभी खामोशी कभी गुस्सा कभी खिलखिलाना
तुम्हारी हर शोखियां और अदाएं प्यारी लगीं
सादगी, मासूम हंसी व अपनी प्यारी बातों से
तुम मुझे आसमान से उतरी कोई परी लगाी
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
सांवली रात चांदनी के लिबास में भली लगी
तितलियों के पंख सी झपकती तुम्हारी पलकें
रुप के महकते गुलशन में बेफिक्र उडती लगीं
जब तुम अपने बाल लहरा के चलती हो सच
तुम छलछलाती बलखाती इठलाती नदी लगीं
कभी खामोशी कभी गुस्सा कभी खिलखिलाना
तुम्हारी हर शोखियां और अदाएं प्यारी लगीं
सादगी, मासूम हंसी व अपनी प्यारी बातों से
तुम मुझे आसमान से उतरी कोई परी लगाी
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
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