सुलग रहे हैं हम अपने ही अलाव में
या कि बह रहे हैं वक्त के बहाव में
या कि बह रहे हैं वक्त के बहाव में
ड़ालियां फूलों के बोझ सेतो नहीं पर
झुक रही रही हैं ये हवा के दबाव में
झुक रही रही हैं ये हवा के दबाव में
देखकर ज़्ामाने की रईसी लगता है
बीत रही है ज़िदगी कितने अभाव में
बीत रही है ज़िदगी कितने अभाव में
सफरे जिंदगी का लुत्फ ही न लिया
रास्ता कटगया यादों के रखरखाव में
रास्ता कटगया यादों के रखरखाव में
डूबने से हरगिज डरता नही है मुकेश
छोड दिया खुद को चढते दरियाव में
मुकेश इलाहाबादी ........................
छोड दिया खुद को चढते दरियाव में
मुकेश इलाहाबादी ........................
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