Pages

Sunday, 23 November 2014

जिस्मो जॉ के क़रीब लगता है

जिस्मो जॉ के क़रीब लगता है
ग़म भी मुझे अज़ीज लगता है

इतनी नफरतें पायी हैं हमने कि
लफजे़ मुहब्बत अजीब लगता है
 
यूँ तो हर कोई दौलतमंद मिलेगा
दिलसे हर शख्श ग़रीब लगता है

चॉद बादल की बाहों मे छुप गया  
मुझको ये बादल रक़ीब लगता है

ये बेरुखी बेवफाई और तन्हाइयां
ये अंधेरा ही मेरा नसीब लगता है

मुकेश इलाहाबादी --------------------

No comments:

Post a Comment