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Sunday, 8 January 2017

बतियाता हूँ तुमसे

जैसे,

दरिया,
बतियाता है
लहरों से
कलकल- कलकल

सन्नाटा बतियाता है
हवा से,
गुपचुप - गुपचुप

भौंरा,
बतियाता है कली से
भुनभुन - भुनभुन


बस,
ऐसे ही मैं
बतियाता हूँ तुमसे
हर दिन - हर पल

मुकेश इलाहाबादी -----------

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