आज भी
हर सांझ,
चाँद के उगते ही
खिल उठता है,
महकता है रजनीगंधा
इस उम्मीद के पे
शायद आज तो तुम उतरोगे
चांदनी बन के
तब
लिपट के करेंगे केलि
मुकेश इलाहाबादी ---
हर सांझ,
चाँद के उगते ही
खिल उठता है,
महकता है रजनीगंधा
इस उम्मीद के पे
शायद आज तो तुम उतरोगे
चांदनी बन के
तब
लिपट के करेंगे केलि
मुकेश इलाहाबादी ---
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