Pages

Saturday, 14 January 2017

मेरी, तमाम कोशिशें

एक
----

मेरी,
तमाम कोशिशें
नाकामयाब रही
उस शून्य को भरने में
जो उपजा है
तुम्हारे जाने के बाद

दो
---

शायद
मेरे ही हाथ
छोटे रह गए हों
उस चाँद को छूने में
जिसे पाना मेरी चाहत रही

मुकेश इलाहाबादी ---------


No comments:

Post a Comment