इक,
लंबी दूरी,
साथ - साथ चलने के बाद
एहसास हुआ
हम तो वहीं के वहीं हैं
जहाँ से चले थे
पहले भी हम तुम अजनबी थे
आज भी अजनबी से हैं
सिर्फ
हवा के झोंके
खेत खलिहान के दृश्य
भीड़ भरे बाजार
साथ साथ चलते
सूरज - चाँद
और हमारे जिस्म के साथ
दो समानांतर पटरियों सा
हम तय कर रहे थे
अपनी - अपनी दूरी
मुकेश इलाहाबादी ----
लंबी दूरी,
साथ - साथ चलने के बाद
एहसास हुआ
हम तो वहीं के वहीं हैं
जहाँ से चले थे
पहले भी हम तुम अजनबी थे
आज भी अजनबी से हैं
सिर्फ
हवा के झोंके
खेत खलिहान के दृश्य
भीड़ भरे बाजार
साथ साथ चलते
सूरज - चाँद
और हमारे जिस्म के साथ
दो समानांतर पटरियों सा
हम तय कर रहे थे
अपनी - अपनी दूरी
मुकेश इलाहाबादी ----
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