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Wednesday, 18 May 2016

काश! उन दिनों

काश!
उन दिनों
जब
हम दोनों प्रेम में थे
नहीं नहीं
सिर्फ मैं
तुम्हारे प्रेम में था
और
तुम हंस रही थीं
एक निश्छल और मासूम हँसी
तब हमारे पास भी
आज की तरह
होता एक स्मार्ट फ़ोन
और सेव कर सकता
तुम्हारी दूधिया खनखनाती हँसी
जिसे बार बार सुनता
अपने खामोश बियाबान में
और शायद तब मैं
उतना उदास न होता,
जितना आज हूँ -
तुम्हारे बगैर -
मेरी प्यारी सुमी,
तुम मेरी आवाज़ सुन रही हो न ?

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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