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Friday, 20 May 2016

ये और बात दूर दूर हो के चलता है

ये और बात दूर दूर हो के चलता है
चाँद मेरे साथ साथ सफर करता है

शायद सूरज का भी कोई चाँद होगा
तभी वो भी तो मेरी तरह जलता है

बर्फ का हिमालय है ये ज़िगर मेरा
यहाँ  दरिया -ऐ-ईश्क़ बहा करता है

शर्मो हया उसे कुछ कहने नही देती
लिहाज़ा वो निगाहों से बात करता है

चिल्लाने से भी यहाँ कुछ नहीं होगा
बहरों का शहर है मुकेश चुप रहता है  

मुकेश इलाहाबादी ------------------

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