हवाओं का रुख पहचाना करो
फिर नाव के पाल बांधा करो
ये मोम का जिस्म लेकर तुम
सूरज के शहर न जाया करो
जो तुम्हारा दर्द न बाँट सके
उसको दुखड़ा न सुनाया करो
मिट्टी में मिल जाएगा बदन
इस जिस्म पे न इतराया करो
गर तुम्हे हमसे मुहब्ब्त नहीं
देख कर यूँ न मुस्कुराया करो
मुकेश इलाहाबादी -----------
फिर नाव के पाल बांधा करो
ये मोम का जिस्म लेकर तुम
सूरज के शहर न जाया करो
जो तुम्हारा दर्द न बाँट सके
उसको दुखड़ा न सुनाया करो
मिट्टी में मिल जाएगा बदन
इस जिस्म पे न इतराया करो
गर तुम्हे हमसे मुहब्ब्त नहीं
देख कर यूँ न मुस्कुराया करो
मुकेश इलाहाबादी -----------
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