ज़रा सी बारिश होगी घुल जाएंगे
मिट्टी के खिलौने हैं गल जाएंगे
बहुत फिसलन है राहे जवानी में
हाथ थाम लो तो, सम्हल जाएंगे
मैं सूरज हूँ मुझसे मत लिपट तू
ये तेरे मोम के पर हैं जल जाएँगे
अभी तो दिन है अभी तो घर पे हूँ
सांझ, आवारगी पे निकल जाएँगे
अभी तो नयी - नयी मुलाकात है
धीरे धीरे हम भी घुलमिल जाएंगे
मुकेश इलाहाबादी -----------------
मिट्टी के खिलौने हैं गल जाएंगे
बहुत फिसलन है राहे जवानी में
हाथ थाम लो तो, सम्हल जाएंगे
मैं सूरज हूँ मुझसे मत लिपट तू
ये तेरे मोम के पर हैं जल जाएँगे
अभी तो दिन है अभी तो घर पे हूँ
सांझ, आवारगी पे निकल जाएँगे
अभी तो नयी - नयी मुलाकात है
धीरे धीरे हम भी घुलमिल जाएंगे
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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