जब,
उस दिन
छत पे
खड़ी हो के
तुम, हँस -हँस के
बतिया रही थी
मोबाइल पे किसी से
उसी वक़्त मैंने
चुपके से,
अपनी अंजुरी में
लोक ली थी
तुम्हारी खनखनाती हँसी
जो अब
चमकती है
रात के अँधेरे में
जुगनू सा
और मैं खो जाता हूँ ,
तुम्हारी दूधिया हँसी के उजाले में
(सुमी - सच तुम बहुत अच्छा हंसती हो - मेरी प्यारी सुमी _
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------
उस दिन
छत पे
खड़ी हो के
तुम, हँस -हँस के
बतिया रही थी
मोबाइल पे किसी से
उसी वक़्त मैंने
चुपके से,
अपनी अंजुरी में
लोक ली थी
तुम्हारी खनखनाती हँसी
जो अब
चमकती है
रात के अँधेरे में
जुगनू सा
और मैं खो जाता हूँ ,
तुम्हारी दूधिया हँसी के उजाले में
(सुमी - सच तुम बहुत अच्छा हंसती हो - मेरी प्यारी सुमी _
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------
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