अब कोई तिश्नगी बाकी नहीं
ख्वाहिशे जिंदगी बाकी नहीं
महफ़िल से तुम जो चले गए
फिर कोई आरज़ू बाकी नही
लौ कंपकंपा के कह रही कि
चराग की रौशनी बाकी नहीं
बहुत गुदगुदाया मैंने उसे
उसके चेहरे पे हंसी बाकी नहीं
रात रोया है वह शख्श इतना
अब आखों मे नमी बाकी नहीं
मुकेश इलाहाबादी --------------
ख्वाहिशे जिंदगी बाकी नहीं
महफ़िल से तुम जो चले गए
फिर कोई आरज़ू बाकी नही
लौ कंपकंपा के कह रही कि
चराग की रौशनी बाकी नहीं
बहुत गुदगुदाया मैंने उसे
उसके चेहरे पे हंसी बाकी नहीं
रात रोया है वह शख्श इतना
अब आखों मे नमी बाकी नहीं
मुकेश इलाहाबादी --------------
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