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Monday, 18 March 2013

आईना टूट गया छनछनाता हुआ

आईना टूट गया छनछनाता हुआ
फेंका किसी ने पत्थर सनसनाता हुआ

हादसों का शहर हो गया हमारा
कब गिर जाए गोला सनसनाता हुआ ?

नाचती है गुडिया रस्सी पे भूखे पेट
तब लोग फेंकते हैं पैसा खनखनाता हुआ

कली अभी तो खिली भी न थी
भौंरा आ गया बाग़ मे भनभनाता हुआ

अब तो बेख़ौफ़ बेदर्द हो गया हूँ मुकेश
गुज़र जाऊंगा ग़ज़ल गुनगुनाता हुआ

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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