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Saturday, 9 March 2013

रंग और मुल्क देख कर नहीं होती


रंग  और मुल्क देख कर नहीं होती
मुहब्बत की कोई सरहद नही होती

तमाम पहरे लगा रखे हो जमाने ने
मुहब्बत हो जाती है खबर नही होती

होती है लम्बी कयामत तक अक्सर
शबे हिज्र की जल्दी सहर नही होती

ये आग का दरिया है झुलस जाओगे 
मुहब्बत  पानी  की  नहर  नही होती

कुर्बां हो जाएँ जिस्मो जाँ  व  दौलत से
मुकेश मुहब्बत की कोई हद नहीं होती

मुकेश इलाहाबादी --------------------------
 

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