मुहब्बत फ़र्ज़ हो के रह गयी
ज़िन्दगी दर्द हो के रह गयी
हिज्र की स्याह लम्बी रात
तुम बिन सर्द हो के रह गयी
हमसे की थी जो वफ़ा तुमने
वे अब क़र्ज़ हो के रह गयी
ज़ख्म सारे लाइलाज हो गए
जीस्त मर्ज़ हो के रह गयी
आरजू ऐ मुहब्बत मुकेश की
फक्त अर्ज़ हो के रह गयी
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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