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Tuesday, 12 March 2013

मुहब्बत फ़र्ज़ हो के रह गयी


 मुहब्बत फ़र्ज़ हो के रह गयी
ज़िन्दगी  दर्द  हो  के रह गयी

हिज्र  की  स्याह  लम्बी  रात
तुम बिन सर्द हो के  रह गयी

हमसे की थी जो वफ़ा तुमने
वे अब क़र्ज़ हो के रह गयी

ज़ख्म सारे लाइलाज हो गए
जीस्त  मर्ज़  हो  के  रह गयी

आरजू ऐ मुहब्बत मुकेश की
फक्त    अर्ज़  हो  के  रह  गयी

मुकेश इलाहाबादी ---------------

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