ग़म और दर्द की बातें न करो
बीमार से मर्ज़ की बातें न करो
हो गए हैं शहर में बेईमान सब
ऐसे मे फ़र्ज़ की बातें न करो
मर रहे हैं जो किसान रोज़ रोज़
उनसे और क़र्ज़ की बातें न करो
जुर्म ही जिनका धर्मो ईमान है
उनसे हया शर्म की बातें न करो
जुडी हो जमात जब काहिलों की
तुम ऐसे मे कर्म की बातें न करो
मुकेश इलाहाबादी ----------------
बीमार से मर्ज़ की बातें न करो
हो गए हैं शहर में बेईमान सब
ऐसे मे फ़र्ज़ की बातें न करो
मर रहे हैं जो किसान रोज़ रोज़
उनसे और क़र्ज़ की बातें न करो
जुर्म ही जिनका धर्मो ईमान है
उनसे हया शर्म की बातें न करो
जुडी हो जमात जब काहिलों की
तुम ऐसे मे कर्म की बातें न करो
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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