शतरंज की बिसात के प्यादे रहे
हर बड़े मोहरे से मात खाते रहे
बाद्शाहियत जिनकी फितरत थी
क़दम भर चल के बहक जाते रहे
वज़ीर, फील, और रुख मर गया
फिर भी प्यादे से बाजी बढाते रहे
हमारे ही मोहरे बगावाती रहे तभी
कई बार शै का शिकार होते रहे
हमने तो हर बाजी खेल मे लिया
लोग इसपे सियासी रंग चढाते रहे
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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