एहसान मंद है दिल तेरे रहमो - करम का
ज़ख्म ज़ख्म गवाह, तेरे ज़ुल्मो सितम का
छीन कर शुकूं तुमने मेरे सुबो - शाम का
बदला लिया है तुमने ये किस जनम का
सोख लूंगा आंसू क़तरा कतरा तेरी आँख से
खा के कसम कह रहा तेरे दीदा ऐ नम का
गर आलूदा खूं मिल जाएँ पैरों के निशाँ कंही
जान लो तेरे दर पे ये निशाँ है मेरे कदम का
मैकदे से निकल के अब जाएँ हम कहाँ ??
पूछता फिर रहा सबसे पता दैरो हरम का
मुकेश लाहाबादी --------------------------------
ज़ख्म ज़ख्म गवाह, तेरे ज़ुल्मो सितम का
छीन कर शुकूं तुमने मेरे सुबो - शाम का
बदला लिया है तुमने ये किस जनम का
सोख लूंगा आंसू क़तरा कतरा तेरी आँख से
खा के कसम कह रहा तेरे दीदा ऐ नम का
गर आलूदा खूं मिल जाएँ पैरों के निशाँ कंही
जान लो तेरे दर पे ये निशाँ है मेरे कदम का
मैकदे से निकल के अब जाएँ हम कहाँ ??
पूछता फिर रहा सबसे पता दैरो हरम का
मुकेश लाहाबादी --------------------------------
No comments:
Post a Comment