जब तलक तुम हमसफ़र थे
राह मे ढेरों हंसीन मन्ज़र थे
अब हर तरफ सिर्फ रेत ही रेत
तुम थे तो समंदर ही समंदर थे
राह में एक भी हरा पत्ता न मिला
जितने भी मिले सूखे शज़र थे
तुम थे तो कारवां अपने साथ था
बाद तेरे साथी सब इधर उधर थे
जाने कब मंजिल गुज़र गयी!!!
याद में तेरे हम इतने बेखबर थे
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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