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Sunday, 17 March 2013

जब तलक तुम हमसफ़र थे



जब तलक तुम हमसफ़र थे
राह मे ढेरों हंसीन मन्ज़र थे

अब हर तरफ सिर्फ रेत ही रेत  
तुम थे तो समंदर ही समंदर थे

राह में एक भी हरा पत्ता न मिला
जितने भी मिले सूखे शज़र  थे  

तुम थे तो कारवां अपने साथ था
बाद तेरे साथी सब इधर उधर थे

जाने  कब मंजिल गुज़र गयी!!!
याद में तेरे हम इतने बेखबर थे

मुकेश इलाहाबादी ---------------

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