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Saturday, 9 March 2013

अपनी कुरूपता मसखरी व


अपनी
कुरूपता
मसखरी व
भदेसपन को देखकर
मै हसता रहा देर तक
जब तक कि
आखों की कोरों से
आंसू नहीं निकल आये
व देह मे ऐठन नहीं होने लगी
बहुत देर तक हसने के बाद
मेरे आंसू सूख चुके थे
और ---
एक गहरी चुप्पी छप चुकी थी
चेहरे की झुर्रियों मे
मुकेश इलाहाबादी -----------





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