अपने ग़म से गाफ़िल हैं
शायद हम सब काहिल हैं
अपनों पे ही वार करें हम
देखो कितने जाहिल हैं ??
खुद अपनी कश्ती डुबो रहे
फिर ढूंढें अपना साहिल हैं
जो होते इतने रोज़ घोटाले
इसमें सारे नेता शामिल हैं
किताबे मुहब्बत पढ़ा नहीं
कहते आलिम फ़ाज़िल हैं
मुकेश इलाहाबादी --------
शायद हम सब काहिल हैं
अपनों पे ही वार करें हम
देखो कितने जाहिल हैं ??
खुद अपनी कश्ती डुबो रहे
फिर ढूंढें अपना साहिल हैं
जो होते इतने रोज़ घोटाले
इसमें सारे नेता शामिल हैं
किताबे मुहब्बत पढ़ा नहीं
कहते आलिम फ़ाज़िल हैं
मुकेश इलाहाबादी --------
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