बन के बादल बरसना नहीं आया
फूलों सा हमें खिलना नहीं आया
अक्सरहां लोग ख़फ़ा हो जाते हैं
बात मुंह देखी कहना नहीं आया
हमने ता उम्र आग ही आग देखी
कि आब सा रंवा होना नहीं आया
ठहरी हुई झील की मानिंद रहा
दरिया सा हमें बहना नहीं आया
टूट जाना ही बेहतर लगा हमको
आगे तूफाँ के झुकना नहीं आया
मुकेश इलाहाबादी -----------------
फूलों सा हमें खिलना नहीं आया
अक्सरहां लोग ख़फ़ा हो जाते हैं
बात मुंह देखी कहना नहीं आया
हमने ता उम्र आग ही आग देखी
कि आब सा रंवा होना नहीं आया
ठहरी हुई झील की मानिंद रहा
दरिया सा हमें बहना नहीं आया
टूट जाना ही बेहतर लगा हमको
आगे तूफाँ के झुकना नहीं आया
मुकेश इलाहाबादी -----------------
No comments:
Post a Comment