इक तुम ही हो जिससे कह सुन लेते हैं
वैसे तो अक्सरहां हम चुप ही रहते हैं
तुम्हारी हरबात अफसाना आँखे नज़्म
जिसे हम चुपके - चुपके पढ़ते रहते हैं
दिन में यादों के पंछी सोये से रहते हैं
साँझ होते ही फलक पे उड़ने लगते हैं
ये मासूम हँसी दूध सा चेहरा तभी तो
तुझको लोग परियों की रानी कहते हैं
या तो मुझको सफर में तेरा साथ मिले
या फिर सफर में तन्हा ही खुश रहते हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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