तेरे साथ से बेहतर कोई साथ नहीं
तुझसे खूबसूरत कोई ख्वाब नहीं
चुपके - चुपके तेरी आँखे पढता हूँ
तुझसे बढ़ -कर कोई किताब नहीं
कितनी रातें जागे जागे बीती मेरी
इसका मेरे पास कोई हिसाब नहीं
इक बार जी भर आ बातें कर ले तू
फिर उम्र भर न मिल एतराज नहीं
मुक्कू सच कहूँ तू मेरे लिए क्या है
इसका तुझे जरा भी एहसास नहीं
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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