कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर
जी रहा हूँ तेरी चाहतें ले कर
थका हूँ फिर भी चल रहा हूँ
फटे जूते फटी जुराबें ले कर
तुझसे कहने सुनने आया हूँ
ज़िंदगी की शिकायतें ले कर
सोचता हूँ मै भी मंदिर जाऊँ
कुछ चाहतें व मुरादें ले कर
छुप - छुपा के कहाँ जा रहे हो
ये दर्दों ग़म की कताबें ले कर
मुकेश इलाहाबादी --------------
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