जिस तरफ मुँह था उस तरफ पीठ कर ली है
अपने चलने के रास्ते की दिशा बदल दी है
जैसे ही मुझे लगा मै तो नक्कार खाने में हूँ
अपने कान बंद कर लिए ज़ुबान सिल ली है
तुमने अल्फ़ा ओमेगा तक पढ़ लिया होगा
हमने ज़िंदगी भर ईश्क़ की किताब पढ़ी है
कभी चाँद मेरे साथ ठिठोली किया करता
आज कल घर में मै और हूँ मेरी तन्हाई है
वो भी गुमशुम गुमशुम रहता है और मै भी
वजह ज़रा सी बात पे हम दोनों की कट्टी है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
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