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Monday, 17 August 2020

जिस तरफ मुँह था उस तरफ पीठ कर ली है

 जिस तरफ मुँह था उस तरफ पीठ कर ली है 

अपने चलने के रास्ते की दिशा बदल दी है 


जैसे ही मुझे लगा मै तो नक्कार खाने में हूँ 

अपने कान बंद कर लिए ज़ुबान सिल ली है 


तुमने अल्फ़ा ओमेगा तक पढ़ लिया होगा 

हमने ज़िंदगी भर ईश्क़ की किताब पढ़ी है 


कभी चाँद मेरे साथ ठिठोली किया करता 

आज कल घर में मै और हूँ मेरी तन्हाई है 


वो भी गुमशुम गुमशुम रहता है और मै भी 

वजह ज़रा सी बात पे हम दोनों की कट्टी है 


मुकेश इलाहाबादी --------------------------


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