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Friday, 7 August 2020

जैसे तितली पँख सिकोड़ के बैठी है

 जैसे तितली पँख सिकोड़ के बैठी है

तेरे होंठो पे हँसी ऐसे छुप के बैठी है

मेरे काँधे पे जब तो ठुड्डी रखती है
जैसे चिड़िया उड़ के मुंडेर पे बैठी है

तू धानी चुनर ओढ़ जब गले मिले
ज्यूँ ज़मी फलक की गोद में बैठी है

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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