ईश्क़ ही जन्नत है मुझे मर जाने दे
तेरी आँखे इक नदी मुझे डूब जाने दे
सुना है ईश्क़ एक आग का दरिया है
अगर ये आग ही है तो जल जाने दे
लोग कहते हैं तेरी बातों में नशा है
इक बार मुझको भी बहक जाने दे
मुसाफिर हूँ शुबो होते ही चल दूँगा
शब् भर को सही मुझे ठहर जाने दे
रात भर बहुत रोई हैं ये आँखे मुकेश
इन्हे पल दो पल ही सही मुस्कुराने दे
मुकेश इलाहाबादी ------------
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