एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Sunday, 7 July 2013
उदासी का शबब
उदासी का शबब
अब हमसे न पूछिये
बहुत चोट खाये हुए हैं
जमाने से हम
अब जा के
एक फूल मयस्सर हुआ, हमे
तुम्हारी दोस्ती का,
तब जा के हम मुसकुराए हैं
मुकेश इलाहाबादी .............
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