एक बोर आदमी का रोजनामचा

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Sunday, 11 August 2013

खुद ही अपना फसाना लिखा

खुद ही अपना फसाना लिखा
लिख लिख के रोये
हर लफ्ज़ मे तुम याद आये
रह रह के रोये

हम जाके किससे कहते ?
तेरा किस्सा ए बेवफाई
याद करके तेरी हर बात हम
घुट घुट के रोये

वह तेरा मुस्कुराना बेवजह
और खिलखिला के भाग जाना
कि हम तेरी हर अदायें याद
कर कर के रोये

मेरे चेहरे की तहरीर से
कहीं कोई तेरा नाम न पढ़ ले
एहतियातन हम जमाने से
छुप छुप के रोये

मुकेश  इलाहाबादी ..........



एक बोर आदमी का रोजनामचा at 08:42
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