एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Wednesday, 30 October 2013
तेरे ज़ख्मो के निशाँ इतने गहरे हैं
तेरे ज़ख्मो के निशाँ इतने गहरे हैं
हमे वर्षो लग जाएंगे इन्हे धोने मे
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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