मै पूरी तफसील से तुझे याद करूं
मौसमे तन्हाई को कुछ खाश करूं
अभी यंहा बैठा हूँ फिर वहाँ बैठूंगा
जंहा जंहा भी बैठू तेरी ही बात करूं
दूर तक सिर्फ ज़मी और आसमा हो
फिर तुझसे तंहाई मे मुलाक़ात करूं
तुम गुस्से में और भी हँसी लगती हो
आ आज तुझे थोड़ा सा नाराज़ करूं
होती होगी मुहब्बत आग का दरिया
आओ डूब कर इसे आबे हयात करूं
मुकेश इलाहाबादी ------------------
मौसमे तन्हाई को कुछ खाश करूं
अभी यंहा बैठा हूँ फिर वहाँ बैठूंगा
जंहा जंहा भी बैठू तेरी ही बात करूं
दूर तक सिर्फ ज़मी और आसमा हो
फिर तुझसे तंहाई मे मुलाक़ात करूं
तुम गुस्से में और भी हँसी लगती हो
आ आज तुझे थोड़ा सा नाराज़ करूं
होती होगी मुहब्बत आग का दरिया
आओ डूब कर इसे आबे हयात करूं
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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