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Sunday, 29 December 2013

मौत अच्छी लगी जीना गवारा न हुआ,

मौत अच्छी लगी जीना गवारा न हुआ,
बिछड़ के तुमसे कोई भी हमारा न हुआ

चाहत तो थी जी लूं कुछ और दिन, पर
तेरे बिन ज़माने मे अपना गुज़ारा न हुआ

अपने ही क़द के लोगों से मिलता रहा
ओहदेदार लोगों से कभी याराना न हुआ

हुईं नज़रें अचानक तुमसे चार उस दिन
ज़िंदगी में फिर वो हादसा दोबारा न हुआ

मुक़द्दर मे जो लिखी थी यायावरी मुकेश
गाँव या शहर कहीं भी ठिकाना न हुआ

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

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