मौत अच्छी लगी जीना गवारा न हुआ,
बिछड़ के तुमसे कोई भी हमारा न हुआ
चाहत तो थी जी लूं कुछ और दिन, पर
तेरे बिन ज़माने मे अपना गुज़ारा न हुआ
अपने ही क़द के लोगों से मिलता रहा
ओहदेदार लोगों से कभी याराना न हुआ
हुईं नज़रें अचानक तुमसे चार उस दिन
ज़िंदगी में फिर वो हादसा दोबारा न हुआ
मुक़द्दर मे जो लिखी थी यायावरी मुकेश
गाँव या शहर कहीं भी ठिकाना न हुआ
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
बिछड़ के तुमसे कोई भी हमारा न हुआ
चाहत तो थी जी लूं कुछ और दिन, पर
तेरे बिन ज़माने मे अपना गुज़ारा न हुआ
अपने ही क़द के लोगों से मिलता रहा
ओहदेदार लोगों से कभी याराना न हुआ
हुईं नज़रें अचानक तुमसे चार उस दिन
ज़िंदगी में फिर वो हादसा दोबारा न हुआ
मुक़द्दर मे जो लिखी थी यायावरी मुकेश
गाँव या शहर कहीं भी ठिकाना न हुआ
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------
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