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Tuesday, 29 April 2014

सुबह से सूरज उबल रहा था

सुबह से सूरज उबल रहा था
अच्छा हुआ जो तुम आ गये
पल दो पल के लिए ही सही,,,
हम बादलों के साये में आ गये 

हो गए थे हम तो गुमसुम से,,
ग़म दिए इतने ज़माने वालों ने
चलो अच्छा हुआ तुम आ गए
हम फिरसे हंसने गुनगुनाने लगे

मुकेश इलाहाबादी --------------

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