ख़ुद को मिटा देने की चाह में है,,
क़तरा समंदर बनने की राह में है
सारा चमन ही उजाड़ लगने लगा
इक तितली उसकी निगाह में है
बद्दुआ दे मुकेश, ये फितरत नहीं
वर्ना बहुत आग उसकी आह में है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
क़तरा समंदर बनने की राह में है
सारा चमन ही उजाड़ लगने लगा
इक तितली उसकी निगाह में है
बद्दुआ दे मुकेश, ये फितरत नहीं
वर्ना बहुत आग उसकी आह में है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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