कोई न कोई बहाना ढूंढ लेता हूँ ,,
रोज़ ब रोज़ तुझे याद कर लेता हूँ
जब भी तनहा और उदास होता हूँ
तेरे खतों को बार बार पढ़ लेता हूँ
तेरी यादों का ज़खीरा और माज़ी
सफर किसी तरह से काट लेता हूँ
कोई आरज़ू नहीं शिकायत नहीं
ज़माना जो भी कहे है सुन लेता हूँ
रोज़ रोज़ पीने की कुव्वत कंहा रही
कभी कदात गला तर कर लेता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------------
रोज़ ब रोज़ तुझे याद कर लेता हूँ
जब भी तनहा और उदास होता हूँ
तेरे खतों को बार बार पढ़ लेता हूँ
तेरी यादों का ज़खीरा और माज़ी
सफर किसी तरह से काट लेता हूँ
कोई आरज़ू नहीं शिकायत नहीं
ज़माना जो भी कहे है सुन लेता हूँ
रोज़ रोज़ पीने की कुव्वत कंहा रही
कभी कदात गला तर कर लेता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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