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Saturday, 3 May 2014

ज़मीन कराहती है, आसमान रोता है

ज़मीन कराहती है, आसमान रोता है
हम मर भी जाएं तो कौन पूछ्ता है ?

तुम तो दो चार हादसों से घबरा गये,,
हमारे शहर मे तो रोज़ ही ऐसा होता है

ज़िंदगी से लड़ने  उसका ये तारीका है
शाम दो चार पैग लगा मस्त सोता है

ज़मींदारी  ख़त्म हो गयी तो क्या हुआ
अब गाँव का सरपंच हमको लूटता है

हादसे इक खबर हुआ करते हैँ मुकेश
ख़बर के बारे में कौन इतना सोंचता है

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

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