ऐ दोस्त , ख़याल तो अच्छा है, अपने ज़ख्मों को ज़ुबाँ देने का
ज़माने वाले जिस्म से ज़्यादा जुबां पे खंज़र चलाते हैं मुकेश
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------------
ज़माने वाले जिस्म से ज़्यादा जुबां पे खंज़र चलाते हैं मुकेश
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------------------
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