दर्द के आँसू छलक रहे हैं
अपने अंदर दहक रहे हैं
ऊपर से तो दिखते सख्त
भीतर- भीतर दरक रहे हैं
घर आँगन में सन्नाटा है
छत पे पंछी चहक रहे हैं
ग़म पीकर बैठे दुनिया का
प्यार में तेरे बहक रहे हैं
जूही, बेला, चंपा, हरश्रृंगार
यार की खुशबू,महक रहे हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------
अपने अंदर दहक रहे हैं
ऊपर से तो दिखते सख्त
भीतर- भीतर दरक रहे हैं
घर आँगन में सन्नाटा है
छत पे पंछी चहक रहे हैं
ग़म पीकर बैठे दुनिया का
प्यार में तेरे बहक रहे हैं
जूही, बेला, चंपा, हरश्रृंगार
यार की खुशबू,महक रहे हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------
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