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Saturday, 17 May 2014

ज़िंदगी जब तक रही

ज़िंदगी जब तक रही
तिश्नगी तब तक रही

हुस्न और जवानी
साथ कब तक रही

कुछ कह न सके
बात लब तब रही

तूफ़ान के बाद भी
ख़ामुशी देर तक रही

रुस्वाइयां हमारी
दूर दूर तक रही

मुकेश इलाहाबादी ---

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