ज़िंदगी जब तक रही
तिश्नगी तब तक रही
हुस्न और जवानी
साथ कब तक रही
कुछ कह न सके
बात लब तब रही
तूफ़ान के बाद भी
ख़ामुशी देर तक रही
रुस्वाइयां हमारी
दूर दूर तक रही
मुकेश इलाहाबादी ---
तिश्नगी तब तक रही
हुस्न और जवानी
साथ कब तक रही
कुछ कह न सके
बात लब तब रही
तूफ़ान के बाद भी
ख़ामुशी देर तक रही
रुस्वाइयां हमारी
दूर दूर तक रही
मुकेश इलाहाबादी ---
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