ऐसा नहीं कि सिर्फ उजाले मिले
किले में कई अँधेरे तहखाने मिले
महफ़िलें सज़ती रहीं रास रंग की
वहाँ भी कई साज़ सिसकते मिले
बुलंद दरवाज़ा ऊंची मेहराबें थीं
मगर वहाँ बंद सारे दरीचे मिले
किताब ऐ दिल भी पढ़ के देखा
वहाँ भी हमको झूठे फसाने मिले
जिन्हे हम फरिस्ता समझते रहे
वे भी हमारी तरह कमीने मिले
मुकेश इलाहाबादी ------------------
किले में कई अँधेरे तहखाने मिले
महफ़िलें सज़ती रहीं रास रंग की
वहाँ भी कई साज़ सिसकते मिले
बुलंद दरवाज़ा ऊंची मेहराबें थीं
मगर वहाँ बंद सारे दरीचे मिले
किताब ऐ दिल भी पढ़ के देखा
वहाँ भी हमको झूठे फसाने मिले
जिन्हे हम फरिस्ता समझते रहे
वे भी हमारी तरह कमीने मिले
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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