जिसके नाम की चिट्ठी बाँचू
उसके नाम पे चुप रह जाऊं
मै लाश शरम की ऐसी मारी
अपनी बातें उससे कह न पाऊँ
रह रह करे इशारा छत पे आऊँ
पर दिल मोरा धड़के मै न जाऊं
बाँध कंकरियां संग फेंकी पाती
घबराऊँ,पर बिन पढ़े रह न पाऊँ
सखी, जिस दिन से है प्रीत लगी
बात बात में मै हँसू और मुस्काऊँ
मै पगली रह रह के शीशे में देखूं
अपनी सूरत में खुद से शरमाऊँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------
उसके नाम पे चुप रह जाऊं
मै लाश शरम की ऐसी मारी
अपनी बातें उससे कह न पाऊँ
रह रह करे इशारा छत पे आऊँ
पर दिल मोरा धड़के मै न जाऊं
बाँध कंकरियां संग फेंकी पाती
घबराऊँ,पर बिन पढ़े रह न पाऊँ
सखी, जिस दिन से है प्रीत लगी
बात बात में मै हँसू और मुस्काऊँ
मै पगली रह रह के शीशे में देखूं
अपनी सूरत में खुद से शरमाऊँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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