सफर में था मगर फेहरिश्ते हमसफ़र में न था
हैसियत मेरी कुछ भी नहीं पर सिफर में न था
मुझे बगैर सुनाए कोई बात उसकी पूरी न होती
यूँ तो मै हर किस्से में था मग़र ज़िकर में न था
बन के खुशबू शामिल उसके नफ़स नफ़स में था
मुकेश गर कोई ढूँढता तो मै उसके शहर में न था
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------
हैसियत मेरी कुछ भी नहीं पर सिफर में न था
मुझे बगैर सुनाए कोई बात उसकी पूरी न होती
यूँ तो मै हर किस्से में था मग़र ज़िकर में न था
बन के खुशबू शामिल उसके नफ़स नफ़स में था
मुकेश गर कोई ढूँढता तो मै उसके शहर में न था
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------
No comments:
Post a Comment