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Wednesday, 23 July 2014

सुई पटक सन्नाटा है

सुई पटक सन्नाटा है
चौराहे पे बम फटा है

शहर घर में  दुपका है
बाहर पुलिस का डंडा है

बस्ती महफूज़ है पर
रहज़नी का ख़तरा है

किसी बहन - बेटी का
फिर चीर -हरण हुआ है

ग़ज़ल का मज़मून भी
अखबार जैसा हो गया है 

मुकेश इलाहाबादी -----

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