सुई पटक सन्नाटा है
चौराहे पे बम फटा है
शहर घर में दुपका है
बाहर पुलिस का डंडा है
बस्ती महफूज़ है पर
रहज़नी का ख़तरा है
किसी बहन - बेटी का
फिर चीर -हरण हुआ है
ग़ज़ल का मज़मून भी
अखबार जैसा हो गया है
मुकेश इलाहाबादी -----
चौराहे पे बम फटा है
शहर घर में दुपका है
बाहर पुलिस का डंडा है
बस्ती महफूज़ है पर
रहज़नी का ख़तरा है
किसी बहन - बेटी का
फिर चीर -हरण हुआ है
ग़ज़ल का मज़मून भी
अखबार जैसा हो गया है
मुकेश इलाहाबादी -----
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