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Monday, 1 September 2014

गुलाब की ताज़ा कली सा खिलते हो

गुलाब की ताज़ा कली सा खिलते हो
मुस्कुराते हो तो फूल सा लगते हो

रजनीगंधा के फूल झरा करते हैं
जब तुम यूँ खिलखिला के हँसते हो

आँगन में  तमाम मोती बिखर जाते हैं
जब तुम अपने गीले गेसू झटकते हो

मेरी बाहों की दश्त ऐ तीरगी में
तुम चाँद सितारों सा चमकते हो
 
ये भोली सी सूरत प्यारी सी बातें
तुम मुझे परियों के देश के लगते हो

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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